एल. सुब्रमण्यम
जन्म: 23 जुलाई, 1947 चेन्नई (तमिलनाडु)
एल. सुब्रमण्यम एक प्रतिभाशाली भारतीय वायलिन वादक, संगीतकार और
दक्षिण भारतीय एवं पश्चिमी शास्त्रीय संगीत का कर्नाटक संगीत के साथ कुशल संयोजक
करनेवाले प्रतिभाशाली कलाकार हैं. इनके द्वारा
संयोजित संगीत की धुनें अपने-आप में अनोखी हैं. ये महज एक वायलिन वादक ही नहीं हैं
अपितु इन्हें संगीत के क्षेत्र में तकनीक और नये प्रयोगों के क्रांतिकारी
परिवर्तनकर्ता के रूप में जाना जाता है.
बचपन में ही इन्होंने शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में विशेष योग्यता
हासिल कर ली थी. ये एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें ‘वायलिन चक्रवर्ती’ (यानि
वायलिन सम्राट) के नाम से बचपन में जाना जाता था. ये केवल वायलिन संगीत के पेशे से
बंधे नहीं रहे, अपितु इन्होंने सैकड़ों धुनों को बनाया, सुसज्जित किया और
पुराने धुनों में सुधार भी किया. ये कर्नाटक संगीत के साथ-साथ पश्चिमी शास्त्रीय
संगीत,
जाज, फ्यूज़न, ऑर्केस्ट्रा और
विश्व संगीत के भी जानकर हैं. इन्हें न केवल भारत अपितु विश्व के कई देशों में
सम्मानित किया जा चुका है. इन्होंने संसार के कई प्रतिष्ठित संगीतकारों के अनुरोध
पर उनके साथ अनेकों अंतर्राष्ट्रीय संगीत कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति भी दी
है.
सुब्रमण्यम का बचपन जाफना (श्रीलंका) में व्यतीत हुआ. प्रतिष्ठित
संगीतकार परिवार से होने की वजह से इन्होंने बचपन में ही अपने कदम इस दिशा में आगे
बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया था. इन्होंने संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा अपने माता-पिता
से ही प्राप्त की थी, जिन्होंने इन्हें संगीत के मूल बारीकियों का
ज्ञान दिया था.
संगीत के अलावा सुब्रमण्यम ने कॉलेज के दिनों में चिकित्सा विज्ञान का
भी अध्ययन किया था. इन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस. की डिग्री
प्राप्त की थी. इनका डॉक्टर के रूप में कार्यकाल अल्प समय का ही रहा और कुछ दिनों
बाद इन्होंने संगीत का अध्ययन फिर से आरम्भ कर दिया. इस दौरान इन्होंने पश्चिमी
संगीत में स्नातकोत्तर की शिक्षा कैलिफ़ोर्निया इंस्टीच्यूशन ऑफ आर्ट्स से प्राप्त
की. इस दौरान इन्हें अनेक समकालीन प्रतिष्ठित संगीतकारों के साथ रियाज करने का
सुनहरा अवसर मिला.
हालांकि इन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में अपना अध्ययन करके डॉक्टर की
उपाधि प्राप्त की थी, फिर भी इन्होंने एक वायलिन वादक के रूप में संगीत
को अपने पेशे के रूप में अपनाया. इनके चाहने वाले प्रेम से इन्हें ‘मणि’ कहकर
पुकारते हैं.
पारिवारिक जीवन:-
इनका पहला विवाह विजी सुब्रमण्यम के साथ वर्ष 1976 में हुआ था, परंतु
दुर्भाग्यवश 9 फरवरी, 1995 को उनकी मृत्यु हो गयी. इसके बाद वर्ष 1999 में इन्होंने
अपना दूसरा विवाह लोकप्रिय भारतीय पार्श्व गायिका कविता कृष्णमूर्ति के साथ किया.
पहली शादी से इन्हें चार बच्चे हुए, जिन्होंने अपने पिता सुब्रमण्यम के
संगीत शिक्षा का अनुकरण किया और कई संगीत के कार्यक्रमों में अपने प्रस्तुत भी
देते रहे हैं. इनकी बड़ी बेटी गिंगेर शंकर इस समय लॉस एंजिल्स में संगीत
कंपोजर के रूप में कार्य कर रही हैं. इनकी दूसरी बेटी बिंदु (सीता) एक प्रसिद्ध
गायिका और गीतकार हैं. इनके बड़े बेटे नारायण एक सर्जन (डॉक्टर) हैं जो गायक भी
हैं. जबकि इनके छोटे बेटे अम्बी एक वायलिन वादक हैं जिन्हें बहुत ही प्रसिद्धि
मिली है.
भारतीय तथा पाश्चात्य संगीत को बढ़ावा देने में इनका योगदान:-
एल. सुब्रमण्यम का योगदान भारतीय संगीत के क्षेत्र में काफी प्रभावशाली
रहा है. इन्होंने अपने
संगीत का लाइव प्रदर्शन अपने समय के भारतीय कर्नाटक संगीत शैली के जाने-माने
संगीतकारों जैसे चेम्बई वैद्यनाथ भागवतार, एम.डी. रामनाथन आदि के साथ किया है. इन्होंने
प्रसिद्ध संगीतकार पालघाट मणि अय्यर के साथ कई स्टेज शोज में ‘मृदंगम’ वाद्ययंत्र
भी बजाया है. इन्होंने न केवल वायलिन पर आर्केस्ट्रा के लिए अपना कुशल प्रदर्शन
किया,
अपितु बहुत सी
हॉलीवुड फिल्मों के लिए भी संगीत की रचना की है. इसके अतिरिक्त इन्होंने कई
बालीवुड फिल्मों जैसे ‘सलाम बॉम्बे’ और ‘मिसिसिपी मसाला’ में भी संगीत दिया, जो मीरा नैयर
द्वारा निर्देशित हैं.
इन्होंने बर्नार्डो बेर्तोलुकि की फिल्मों ‘लिटिल बुद्धा’ और ‘कॉटन मैरी
ऑफ मर्चेंट-आइवरी’ के निर्माण में एकल वायलिन वादक के रूप में भी अपनी प्रस्तुति
दी. इन्होने अपने ऑर्केस्ट्रा के कार्यक्रमों को न्यूयॉर्क में ‘फैंटसी ऑफ वैदिक
चैंट (मंत्र)’ नाम से प्रस्तुत किया. इन्होंने जुबिन
मेहता के ‘स्विस रोमंडे आर्केस्ट्रा’, दो वायलिन के साथ ‘ओस्लो फिलहारमोनिक’
और ‘ग्लोबल सिम्फनी’ बर्लिन ओपेरा के साथ विभिन्न कॉन्सर्ट में भी कम किया है.
इन्होंने कर्नाटक संगीत पर आधारित कुछ पुस्तकों का लेखन भी किया है.
पुरस्कार एवं सम्मान:-
एल. सुब्रमण्यम के गौरवमयी संगीत कैरियर में इन्हें कई राष्ट्रीय और
अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़ा गया है.
इन्हें वर्ष 1963 में ‘आल इंडिया रेडियो’ पर सबसे अच्छा वायलिन
वादन के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
वर्ष 1981 में इन्हें प्रतिष्ठित ‘ग्रैमी पुरस्कार’ के लिए
भी नामांकित किया गया था.
वर्ष 1988 में इन्हें भारत सरकार के प्रतिष्ठित नागरिक
सम्मान ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया.
इन्हें वर्ष 1988 में ‘लोटस फेस्टिवल’ पुरस्कार से लॉस एंजेल्स शहर
में सम्मानित किया गया था.
वर्ष 1997 में तत्कालीन नेपाल नरेश शाह बिरेन्द्र ने इन्हें
संगीत के लिए विशेष मेडल प्रदान किया था.
वर्ष 2001 में इन्हें भारत सरकार के दूसरे प्रतिष्ठित
नागरिक सम्मान ‘पद्म भूषण’ से भी पुरस्कृत किया गया. इसी वर्ष इन्हें केरल सरकार
ने ‘मानवियम’ (मिलेनियम) पुरस्कार से सम्मानित किया था.
वर्ष 2003 में इन्हें बैंगलोर विश्वविद्यालय, द्वारा
‘डॉक्टरेट’ की उपाधि प्रदान की गई.
वर्ष 2004 में इन्हें ‘विश्व कला भारती’ पुरस्कार से भारत
कल्चर,
चेन्नई, द्वारा, ‘संगीत कलारत्न’
पुरस्कार,
बेंगलोर गायन
समाज द्वारा ‘संगीत कला शिरोमणि’ और ‘परकुस्सिव आर्ट्स सेंटर’, बेंगलोर, द्वारा सम्मानित
किया गया.
वर्ष 2009 में इन्हें कांची कामकोटि पीठं, कांचीपुरम द्वारा
‘तंत्री नाद मणि’ पुरस्कार से नवाजा गया. इसी वर्ष इन्हें इस्कॉन मंदिर, बेंगलोर, द्वारा ‘अस्थाना
विद्वान’ की उपाधि से विभूषित किया गया था.
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