जन्म:- 1935 (मायमेंसिंग, वर्तमान बांग्लादेश)
वर्तमान निवास स्थान:- चितरंजन पार्क, नई दिल्ली (भारत)
कार्यक्षेत्र:- सितार वादक और संगीत शिक्षक
पंडित देवब्रत चौधरी को भारतीय संगीत के क्षेत्र में ‘देबू’ के नाम से भी
जाना जाता है. पंडित देवब्रत (देबू) चौधरी भारत के प्रमुख सितार वादक, भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त
संगीतकार और दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत के शिक्षक रह चुके हैं. इन्होंने
‘सेनिआ संगीत घराना’ के श्री पंचू गोपाल दत्ता और संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली
खान से संगीत की शिक्षा ग्रहण की. इन्हें ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे
प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है.
ये संगीत से
संबंधित कई पुस्तकों के लेखक,
आठ नए संगीत रागों के जन्मदाता और
बहुत से नए संगीत के धुनों के निर्माता भी हैं. इन्होंने वर्ष 1963 से देश-विदेश में बहुत से स्टेज शो, रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में अपने संगीत की प्रस्तुति दी
है. ये ‘सेनिया संगीत घराना’ मैहर (मध्य प्रदेश) के शास्त्रीय संगीत के ध्वज वाहक
हैं. ये संगीत का शिक्षण कार्य करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के संगीत संकाय के
डीन और विभागाध्यक्ष भी रह चुके हैं. इनकी संगीत के मधुर धुनों की एक अपनी अलग ही
विशेषता है. इन्होंने बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त
किए हैं. ये इस्कॉन मंदिर के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के आजीवन सदस्य भी हैं.
प्रारम्भिक एवं
पारिवारिक जीवन:-
पंडित देवब्रत
(चौधरी) का जन्म वर्ष 1935
में मायमेंसिंग (तत्कालीन भारत)
वर्तमान बांग्लादेश में हुआ था.
इन्होंने मात्र
चार वर्ष की उम्र से ही सितार के साथ खेलना प्रारम्भ कर दिया था. उन्होंने अपने
पहले सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम का प्रदर्शन मात्र 12 वर्ष
की अवस्था में ही कर दिया था. इनके संगीत के कार्यक्रम का आल इंडिया रेडिओ पर
प्रथम प्रसारण 18 वर्ष की अवस्था में वर्ष 1953 में हुआ था.
जीवन के 38 वर्ष बिताने के बाद इन्होंने सितार का प्रशिक्षण ‘सेनिआ
घराने’ के महान संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से लेना प्रारम्भ किया.
इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की.
दिल्ली
विश्वविद्यालय से अवकाश प्राप्त करने के बाद ये वर्तमान में अपने पुत्र, पुत्री,
दामाद और भतीजा-भतिजिओं के साथ
चितरंजन पार्क, नई दिल्ली में रहते हैं.
शिक्षण एवं प्रशिक्षण
कार्य:-
इन्होंने वर्ष 1971 से वर्ष 1982
तक दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत
विभाग के रीडर के रूप में अध्यापन का कार्य किया और वर्ष 1985 से वर्ष 1988
तक ये इसी विभाग में डीन और
विभागाध्यक्ष भी रहे. इन्होंने महर्षि इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (अब महर्षि
यूनिवर्सिटी ऑफ मनेजमेंट),
अमेरिका में भी वर्ष 1991 से वर्ष 1994
तक भारतीय शास्त्रीय संगीत को
पाश्चात्य देशों में प्रचार-प्रसार में अपनी विशेष सेवाएं दी हैं.
दिल्ली विश्वविद्याल
से अवकाश ग्रहण के बाद इन्होंने एक विशेष संगीत प्रोजेक्ट पर कार्य करना प्रारम्भ
किया, जो दुर्लभ संगीत वाद्य यंत्रों के
द्वारा प्रस्तुत धुनों को परम्परागत ‘ध्रुपद’ और ‘ख्याल’ राग द्वारा नए राग में
प्रस्तुत करने का है. यह प्रोजेक्ट आने वाली युवा पीढ़ी को संगीत के क्षेत्र में
बहुत ही दुर्लभ अनुभव प्रदान करेगा.
संगीत पर
आधारित नई धुनों, पुस्तकों और सीडी का निर्माण:-
इन्होंने आठ नए
संगीत के रागों की रचना की है,
ये राग हैं- बिस्वेस्वरी, पलास-सारंग,
अनुरंजनी, आशिकी ललित,
स्वनान्देस्वरी, कल्याणी बिलावल,
शिवमंजरी और प्रभाती मंजरी (अपनी
पत्नी मंजू की स्मृति में बनाया). इसके अतिरिक्त इन्होंने संगीत पर आधारित तीन
पुस्तकों की भी रचना की है,
ये हैं- ‘सितार एंड इट्स टेक्निक्स’, ‘म्यूजिक ऑफ इंडिया’ और ‘ऑन इंडियन म्यूजिक’. अपने अमेरिका
प्रवास के दौरान इन्होंने ‘महर्षि गन्धर्व वेद’ नाम से 24 सीडी को 24
घंटों के संगीत के लिए रिकॉर्ड
कराया.
इन्होंने बहुत
से एल्बम और कैसेट्स का भी निर्माण EMI,
HMV, ABK (USA), टीवी सीरीज, रिदम हाउस,
आर्काइव म्यूजिक यूएसए, ‘टी’ सीरीज और संसार की अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर किया
है.
संगीत के प्रति इनका
लगाव:-
पंडित देबू
चौधरी को दुर्लभ संगीत और वाद्य यंत्रों पर आधारित रचनाओं का संग्रह करने में
विशेष लगाव है,
जिसके परिणामस्वरुप इन्होने इस अनूठी
परियोजना को प्रारंभ किया. पंडित जी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट जब पूर्ण हो जाएगा तो
यह भारतीय वाद्य संगीत के इतिहास में एक मील के पत्थर से कम नहीं होगा। इनकी अन्य
उपलब्धियों में वर्ष 1984
में स्वीडन में 67 दिनों में 87
व्याख्यान हैं, जो 70
से अधिक कार्यक्रमों में दिए गए थे.
विश्व स्तर पर आयोजित इन कार्यक्रमों में भारत सरकार ने इनको अपना पूर्ण सहयोग
दिया था.
ये महान सितार
वादकों के उस युग से सम्बन्ध रखते हैं,
जिनमें प्रमुख हैं- उस्ताद विलायत
खान, पंडित रवि शंकर और निखिल बनर्जी आदि.
ये 17 फ्रेट के विशेषज्ञ हैं, जबकि अधिकांशतः सितार वादक 19 फ्रेट
का सितार बजाते हैं.
पुरस्कार एवं सम्मान:-
इन्हें भारत
सरकार की तरफ से ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक
सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है.
भारतीय संगीत
नाटक अकादमी द्वारा इन्हें संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत
किया जा चुका है. इन्हें कुछ समय पूर्व एशिया के एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय ‘इंदिरा
कला संगीत विश्वविद्यालय’ खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) द्वारा डी. लिट. की उपाधि से नवाजा जा
चुका है.
भारत सरकार के
सार्वजनिक प्रसारण माध्यम ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के 54वीं वर्षगांठ के अवसर पर वर्ष 2002 में
देबू चौधरी के जीवन के इतिहास को प्रसारित किया गया.
हाल ही के
वर्षों में इन्हें संगीत के क्षेत्र में आजीवन उपलब्धियों के लिए दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों द्वारा
विशेष सम्मान समारोहों में कई ख्यातियों एवं उपाधियों से विभूषित किया गया है.
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