जन्म : 16 अप्रैल, 1813, त्रावनकोर (केरल)
मृत्यु : 27 दिसम्बर, 1846
कार्यक्षेत्र: त्रावनकोर के महाराजा, संगीतकार और लेखक
स्वाथि थिरूनल राम वर्मा त्रावणकोर के प्राचीन रियासत के राजा थे. इसके साथ- साथ ये प्राचीन भारतीय शास्त्री संगीत के एक महान संरक्षक और स्वयं एक सिद्धस्थ संगीतकार भी थे. इन्होंने अपने राजदरबार में कई तत्कालीन प्रसिद्ध संगीतकारों को भी स्थान दिया था, जो इनके संगीत के प्रति विशेष प्रेम को दर्शाता है.
स्वाथि थिरूनल ने त्रावणकोर के महाराजा के रूप में वर्ष 1829 से वर्ष 1846 तक शासन किया था. यद्यपि ये स्वयं ही दक्षिण भारतीय कर्नाटक संगीत के विशेष जानकर थे, परंतु ये अपने राज्य के लोगों और संगीत प्रेमियों को हिन्दुस्तानी संगीत शैली को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे. इन्हें 400 से अधिक संगीत रचनाओं के निर्माण करने का श्रेय भी दिया जाता है. इन रचनाओं में इनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं- पद्मनाभ पही, देवा देवा, सरसिजनाभा और श्री रमण विभो.
इनके बारे में यह भी कहा जाता है कि ये कई देशी-विदेशी भाषाओँ के विशेषज्ञ थे, जैसे- संस्कृत, हिंदी, मलयालम, मराठी, तेलुगु, कन्नड़, बंगाली, तमिल, उड़िया और अंग्रेजी आदि. इन्होंने राजा होते हुए भी संगीत के क्षेत्र में विशेष रुचि के अलावा अन्य दूसरे क्षेत्रों के विकास में भी अविस्मरणीय योगदान दिया. जिसमें प्रमुख है – तिरुवनंतपुरम में खगोलीय वेधशाला का निर्माण, संग्रहालय, चिड़ियाघर, सरकारी प्रेस, त्रिवेंद्रम सार्वजनिक पुस्तकालय (जिसे अब राज्य केन्द्रीय पुस्तकालय के नाम से भी जाना जाता है), ओरिएंटल पांडुलिपि पुस्तकालय और अन्य दूसरे विभिन्न प्रसिद्ध प्रतिष्ठान आदि.
प्रारम्भिक जीवन
स्वाथि थिरूनल राम वर्मा का जन्म 16 अप्रैल, 1813 को दक्षिण भारत के प्राचीन राज्य त्रावणकोर (वर्तमान केरल राज्य) में हुआ था. ये महारानी गोवरी लक्ष्मी बाई और राजराजा वर्मा के द्वितीय संतान थे. इनका पालन-पोषण कोयिथाम्पुरन स्थित चंगनासेरी के राजमहल में हुआ था. इनकी बड़ी बहन का नाम रुक्मिणी बाई और छोटे भाई का नाम उथराम थिरूनल मार्तंड वर्मा था. इनकी मां का निधन छोटे भाई के जन्म के दो माह बाद ही हो गया था. इस समय स्वाथि थिरूनल की उम्र मात्र 17 माह की ही थी. इनकी मां की बहन (मौसी) गोवरी पार्वती बाई ने राज्य का कार्यभार संभाला जबतक की ये बड़े नहीं हो गए. 14 वर्ष की अवस्था में इनका राज्याभिषेक हुआ और इन्होंने राज्य का कार्यभार संभाला. उस समय भी इनके पिता और मौसी दोनों अच्छे पढ़े-लिखे थे, जिन्होंने इनकी शिक्षा-दीक्षा पर विशेष ध्यान दिया था. इन्होंने छ: वर्ष की अवस्था में संस्कृत और मलयालम की शिक्षा ग्रहण करना प्रारम्भ कर दिया था और अंग्रेजी की शिक्षा सात वर्ष की अवस्था में. युवा अवस्था होते-होते इन्होंने अनेक भाषाओँ में महारथ हासिल कर लिया था, जैसे- मलयालम, तमिल, कन्नड़, हिन्दुस्तानी, तेलगु, मराठी, अंग्रेजी, पर्सियन और संस्कृत आदि. युवा अवस्था में ये भाषाओँ के अलावा व्याकरण, कविता और नाटक में भी काफी रुचि लेते थे. एक विद्वान राजा के रूप में इन्होंने अपने राज्य में कला, संस्कृति और संगीत को विशेष महत्व दिया.
पारिवारिक जीवन
श्री स्वाथि थिरूनल राम वर्मा का अल्पायु में ही विवाह हो गया था, परंतु इनकी पहली पत्नी का जल्दी ही स्वर्गवास हो गया. इसके बाद इनका दूसरा विवाह तिरुवात्तर अम्माची पनापिल्लई अम्मा श्रीमती नारायणी पिल्लई कोचम्मा के साथ हुआ, जिनका सम्बन्ध थिरुवात्तर अम्मावीडू परिवार से था. इनकी दूसरी पत्नी कर्नाटक शैली की गायिका और एक कुशल वीणा वादक थीं. इन दोनों से एक पुत्र पैदा हुआ, जिसका नाम थिरुवत्तर चिथिरा नाल अनंथ पद्मनाभन चम्पकरमण थम्पी था. वर्ष 1843 में स्वाथि तिरुनल ने सुंदर लक्ष्मी अम्मल के साथ अपनी तीसरी शादी कर ली, जो मुदालिअर की बेटी थीं, जो त्रिवेंद्रम से विस्थापित हुए थे. सुंदर लक्ष्मी को सुगंधावल्ली के नाम से भी जाना जाता था, वह एक नृत्यांगना थी. कहा तो यह भी जाता है कि थिरूनल की दूसरी पत्नी ने इस तीसरी शादी को मान्यता नहीं दी थी, इसलिए सुगंधावल्ली त्रावणकोर को छोड़कर अन्यत्र चली गई. जिसकी वजह से थिरूनल बहुत दु:खी हुए थे. इस सन्दर्भ में यह भी कहा जाता है कि इस विरह वेदना को थिरूनल सहन नहीं कर पाए और इसी की वजह से 33 वर्ष की अल्पायु में ही हृदयघात के कारण वर्ष 1846 में इनका निधन हो गया.
संगीत और कला को समर्पित जीवन
श्री स्वाथि थिरूनल राम वर्मा के जीवन का इतिहास देखने से पता चलता है कि ये बचपन से ही संगीत के प्रति विशेष प्रेम रखते थे. इनकी सोच थी कि विभिन्न भाषाओं में महारथ हासिल करने के लिए संगीत को एक सर्वश्रेष्ठ माध्यम बनाया जा सकता है. इनके संगीत शिक्षा का प्रशिक्षण करामन सुब्रह्मनिया भागवतार और करामन पद्मनाभ भागवतार की देख-रेख में शुरू हुआ था. इसके बाद इन्होंने अपने अंग्रेजी शिक्षक सुब्बाराव से भी संगीत की शिक्षा प्राप्त की थी. बाद में इन्होंने संगीत सीखने के लिए उस समय के प्रसिद्ध संगीतकारों को सुनने और स्वयं के अभ्यास पर विशेष बल दिया था.
यह वह समय था, जब संगीत और अन्य कलाएं दक्षिण भारत के विभिन्न भागों में अपने प्रारम्भिक रूपों में पनप रही थीं. उस समय कर्नाटक संगीत की तिकड़ी के नाम से प्रसिद्ध त्यागराज, श्यामा शास्त्री और मुथुस्वामी दीक्षितार दक्षिण भारत में संगीत को संवर्धित करने में अपना विशेष योगदान दे रहे थे. उस समय स्वाथि थिरूनल के राजदरबार में प्राय: कई प्रसिद्ध संगीतकार और कलाकर अपनी कलाओं की प्रस्तुति करते रहते थे. इनमें प्रमुख थे- तंजावुर के प्रसिद्ध चार भाइयों की चौकड़ी, त्यागराज के शिष्य कन्नय्या भागवातर, महाराष्ट्रीयन गायक अनंथापद्मनाभ गोस्वामी और इसी प्रकार के अन्य समसामयिक कलाकार.
भारतीय संगीत के उत्थान में इनका योगदान
स्वाथि थिरूनल ने भारतीय संगीत को आगे बढ़ाने में अपना अतुलनीय योगदान दिया है. इन्होंने स्वयं लगभग 500 से अधिक गीतों की रचना की. इसके साथ ही इन्होंने बहुत से संगीत नाटकों की भी रचना की. इनके महत्वपूर्ण कार्यों में प्रमुख रूप से सम्मिलित हैं- वमम्स, जवालिस, पदम्स, स्वरजातिस, क्रिटिज आदि. भारतीय शास्त्रीय संगीत से भी इनका विशेष लगाव था, इसमें इनकी उपलब्धियों में सबसे प्रमुख हैं- ध्रुपद, ठुमरी, तापस, भजन, खयाल आदि की रचना करना. नवरात्री के त्यौहार के लिए इन्होंने विशेष रूप से बहुत से संगीतों का निर्माण भी किया, जो देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए प्रस्तुत किया जाता है.
निधन
इस संगीत एवं कला के महान संरक्षक ने मात्र 33 वर्ष की आयु में ही 27 दिसम्बर, 1846 को हृदयाघात के कारण अपना प्राण त्याग दिया. इसके बाद इनके छोटे भाई उथराम थिरूनल मार्तंड वर्मा राजसिंहासन के उत्तराधिकारी बने और अपने निधन काल यानि वर्ष 1860 तक राज्य करते रहे. इसके बाद इनकी बहन के बेटों ने त्रावणकोर का राजसिंहासन संभाला.
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