वैदिक काल के ऋषियों ने हिन्दुओं के
सबसे प्राचीन दर्शन की नींव रखी। आरुणि और याज्ञवल्क्य (८वीं शताब्दी ईसापूर्व) आदि प्राचीनतम
हिन्दू दार्शनिक हैं।
भारत में 'दर्शन' उस विद्या को कहा जाता है जिसके द्वारा तत्व का ज्ञान हो सके। 'तत्व दर्शन' या 'दर्शन' का अर्थ है तत्व का ज्ञान। मानव के
दुखों की निवृति के लिए और/या तत्व ज्ञान कराने के लिए ही भारत में दर्शन का जन्म
हुआ है। हृदय की गाँठ तभी खुलती है और शोक तथा संशय तभी दूर होते हैं जब एक सत्य
का दर्शन होता है। मनु का कथन है कि सम्यक दर्शन प्राप्त होने
पर कर्म मनुष्य को बन्धन में नहीं डाल सकता तथा जिनको सम्यक दृष्टि नहीं है वे ही
संसार के महामोह और जाल में फंस जाते हैं। भारतीय ऋषिओं ने जगत के रहस्य को अनेक
कोणों से समझने की कोशिश की है। दर्शन ग्रन्थों को दर्शनशास्त्र भी कहते हैं। यह शास्त्र शब्द ‘शासु अनुशिष्टौ’ से निष्पन्न है।
भारतीय दार्शनिकों के बारे में टी एस
एलियट ने कहा
था-[1]
भारतीय दर्शन किस प्रकार और किन परिस्थितियों में
अस्तित्व में आया, कुछ भी
प्रामाणिक रूप से नहीं कहा जा सकता। किन्तु इतना स्पष्ट है कि उपनिषद काल में दर्शन एक पृथक शास्त्र के रूप में विकसित होने लगा था।
तत्त्वों के अन्वेषण की प्रवृत्ति भारतवर्ष में उस सुदूर काल से है, जिसे हम 'वैदिक युग' के नाम से पुकारते हैं। ऋग्वेद के अत्यन्त प्राचीन युग से ही भारतीय
विचारों में द्विविध प्रवृत्ति और द्विविध लक्ष्य के दर्शन हमें होते हैं। प्रथम
प्रवृत्ति प्रतिभा या प्रज्ञामूलक है तथा द्वितीय प्रवृत्ति तर्कमूलक है। प्रज्ञा
के बल से ही पहली प्रवृत्ति तत्त्वों के विवेचन में कृतकार्य होती है और दूसरी
प्रवृत्ति तर्क के सहारे तत्त्वों के समीक्षण में समर्थ होती है। अंग्रेजी शब्दों
में पहली को हम ‘इन्ट्यूशनिस्टिक’ कह सकते हैं और दूसरी को रैशनलिस्टिक। लक्ष्य भी
आरम्भ से ही दो प्रकार के थे - धन का उपार्जन तथा ब्रह्म का साक्षात्कार।
प्रज्ञामूलक और तर्क-मूलक प्रवृत्तियों
के परस्पर सम्मिलन से आत्मा के औपनिषदिष्ठ तत्त्वज्ञान का स्फुट आविर्भाव हुआ।
उपनिषदों के ज्ञान का पर्यवसान आत्मा और परमात्मा के एकीकरण को सिद्ध करने वाले
प्रतिभामूलक वेदान्त में हुआ।
भारतीय मनीषियों के उर्वर मस्तिष्क से जिस कर्म, ज्ञान और भक्तिमय त्रिपथगा का प्रवाह उद्भूत हुआ, उसने दूर-दूर के मानवों के आध्यात्मिक कल्मष को धोकर उन्हेंने पवित्र, नित्य-शुद्ध-बुद्ध और सदा स्वच्छ बनाकर मानवता के विकास में योगदान दिया है। इसी
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